आपने अक्सर देखा होगा हम भारतीय लोग गरमागरम चाय के साथ बिस्कुट डुबाकर खाते है। ये चीज हम बचपन से देखते आए है, और इसका असर हमपर भी होता है। हमारा भी मन करता है की चाय के साथ बिस्कुट भी खाएं। और हम काम के तनाव मे रहते है तो हमारी नजरें अक्सर चायवाले को ढूंढती रहती है, जो हमे चाय के साथ कुछ ऐसे बिस्कुट खिलाये जिससे हमारी शाम लाजवाब हो जाए।
हमे ये जानना जरूरी है की बिस्कुट कैसे बनते है, और ये भी जानना जरूरी है की चाय और बिस्कुट और विषेशरूपसे मारी बिस्कुट का क्या असर होता है।
क्या है मारी बिस्कुट ?
मारी बिस्कुट एक प्रकारका करारा, पौष्टिक, हल्का और स्वादिष्ट बिस्कुट है। यह ऐसा बिस्कुट है जिसे बनाने के लिए गेहूं का आटा, शक्कर, तेल और वनीला के स्वाद वाले पदार्थों के साथ बनाया जाता है। मारी बिस्कुट भारत मे सबसे जादा प्रयोग मे लाया जानेवाला बिस्कुट है। आपने देखा होगा की इसका आकार गोल होता है। और ऊपरी हिस्से मे अक्सर ब्रैंड का नाम छपा रहता है। डॉक्टर डाइबेटिक पेशंट को मारी बिस्कुट खाने की सलाह देते थे । उसके पीछे एक कहानी है। 1875 के आसपास इंग्लंड के शाही परिवार की एक सदस्या थी मारिया और उसिके नाम पर आधारित मारी बिस्कुट लंदन की एक बेकरी ने बिस्कुट बनाया जो क्रिसपी था, ड्राइ था उसमे छोटे छोटे छेद थे। और बिस्कुट के ऊपर मारिया नाम लिखा था । इस प्रकार का बिस्कुट 1875 बनाना एक अलग ही बात हुआ करती थी। और ये एक रॉयल फॅमिली से जुड़ा होने के कारण जादा प्रसिद्ध हुआ।
अब 1970 – 75 की बात करे तो हमे ये बताया जाता था की कम फैट वाले या 0% fat वाले छीजे खाना चाहिए। आप सोचेंगे ऐसा क्यूँ ? उस समय जब हार्ट अटैक की बीमारी का पता चला तो खोज मे ये पाया गया की हार्ट अटैक वाले पेशंट के धमनियोंमे फैट और कोलेस्ट्रॉल पाया गया। और उन्हे लगा की यही वो चीज होगी जो हार्ट अटैक का कारण होगी। उस समय में विज्ञान ने इतनी प्रगति नहीं की थी। लेकिन आज हमे पता है की हमारे शरीर एक एक सेल फैट से संबन्धित है। और कई सारे अंग जैसे की हमारा दिमाग जिसमे लगभग 60% के आसपास फैट ही होता है। इसी वजह से उस समय के डॉक्टर हार्ट अटैक से बचने के लिए मारी बिस्कुट खाने की सलाह देते थे।
जैसा आपने पढ़ा की मारी बिस्कुट कोई अलग ब्रांड नहीं है। हर एक बिस्कुट बनाने वाली कंपनी मारी बिस्कुट बनाती है।
कैसे बनते है बिस्कुट ?
बिस्कुट बनाने के लिए पाँच चीजोंकी आवश्यकत होती है। जैसे की 1. चीनी , 2.मैदा , 3.तेल (ऑइल), 4.दूध का पाउडर, और 5. इनवर्ट शुगर। इसमे बहुत ही कम मात्रा मे फाइबर होता है, ताकि पाचन सहज रूपसे हो सके। और यही सामग्री (ingredients) का उपयोग करके बिस्कुट बनाए जाते है। इनवर्ट शुगर
आइए जानते है एक साधारण बिस्कुट और मारी बिस्कुट के बीच का अंतर।
जैसे की हमने पढ़ा की बिस्कुट आमतौर से पाँच चीजोंसे बनाए जाते है। लेकिन मारी बिस्कुट मे जादातर मैदा उपयोग मे लाया जाता है। न्यूट्रिशन वैल्यू के बारे मे देखा जाए तो साधारण बिस्कुट मे फैट लगभग 20% के आसपास होता है और मारी बिस्कुट मे फैट लगभग 10% के आसपास । इसी कारण पुराने विशेषज्ञ किसी डायबेटिक पेशंट को मारी बिस्कुट खाने की सलाह देते थे। लेकिन डायबेटिक पेशंट को फैट से भी जादा ग्लायसेमिक इंडेक्स के बारे मे देखना होता है। और ग्लायसेमिक लोड देखने के लिए कार्बोहाड्रेट की मात्रा किसी साधारण बिस्कुट मे लगभग 70% के आसपास होती है और मारी बिस्कुट मे यही मात्रा 80% के आसपास होती है। दोनों की तुलना करे तो मारी बिस्कुट मे ग्लायसेमिक लोड 55% से 60% के बीच आती है और साधारण बिस्कुट मे ग्लायसेमिक लोड 45% से 55% के बीच आता है। अब यहाँ गौर करनेवाली बात है की साधारण बिस्कुट के तुलना में मारी बिस्कुट की ग्लायसेमिक लोड जादा है।
ग्लायसेमिक इंडेक्स और ग्लायसेमिक लोड दोनों मे क्या फर्क है?
अलग अलग प्रकार के खाने मे अलग अलग प्रकार के कार्बोहाइड्रेट होते है। खाना खाने बाद आपका शरीर ग्लूकोस बनाता है। ग्लायसेमिक इंडेक्स वह माप है, जिससे हम पता लगा सकते है की, किसी भी प्रकार के खाने के चीज में मौजूदा कार्बोहाइड्रेट कितनी समय में ग्लूकोस बनाता है, और उससे ब्लड शुगर लेवल बढ़ता है। ग्लायसेमिक लोड खाने के किसी हिस्से मे मौजूदा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा के बारे मे होता है। ग्लायसेमिक लोडसे हमे एक अंदाजा लगाने मे मदत होती है कि, किसी भी खाने कि चीज को अगर हम एक मात्रा में ले तो हमारे ब्लड शुगर पर क्या असर होगा।
ग्लायसेमिक इंडेक्स मापने के लिए 100 ग्लायसेमिक इंडेक्स वाले शुद्ध ग्लूकोस को मानक मानकर दूसरी खाने कि चीजोंकों 0 से 100 तक एक श्रेणी दी जाती है। कम ग्लायसेमिक इंडेक्स वाली चिजे खाना सेहत के लिए अच्छा होता है क्योंकि इससे ब्लड शुगर लेवल धीरे धीरे बढती है।
ग्लायसेमिक लोड मापने के लिये, [ ( ग्लायसेमिक इंडेक्स X कार्बोहाइड्रेट ) / 100 ] इस सूत्र का उपयोग करे तो इसमे किसी खाने कि 100 ग्राम मात्रा में ग्लायसेमिक लोड पता चलता है। उदाहरण के तौर पे कार्बोहाइड्रेट की मात्रा ज्यादा होगी और फैट व प्रोटीन कम मात्रा होने के बावजूद भी ग्लायसेमिक लोड ज्यादा होगा और इसके विपरीत फैट व प्रोटीन की मात्रा ज्यादा हो और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम हो तो ग्लायसेमिक लोड कम होगा। तो आपने देखा की सभी बिस्कुट बनाने की प्रक्रिया में वही चीजोंका उपयोग किया जाता है बस थोड़ा बहुत कोम्पोजीशन इधर उधर किया जाता है।
जैसे की किसी व्यक्ति की शुगर लेवल कम हो जाती है तो उसे हम ग्लूकोस वाले बिस्कुट जैसे की पार्ले जी खाने की सलाह देते है, क्योंकि ग्लूकोस बिस्कुट में ग्लायसेमिक लोड कम होता है और मारी बिस्कुट मे जादा। जो भी बिस्कुट मैदा उपयोग मे लाकर बनाया जाता है उसमे औसद दर 45-55 के बीच आएगा।
तो अंत मे हमारी राय यही है की किसी भी डाइबेटिक पेशंट को कम मैदा वाले बिस्कुट एक समय मे 1 या 2 खाये तो ठीक लेकिन उससे जादा नहीं खाने चाहिए, जिससे आपकी शुगर कम बढ़ेगी। और अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
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